बुलगढ़ी को मुख्य मार्ग से जोड़ने वाली सड़क के इर्द-गिर्द लहलहा रहीं फसलें अब कटने लगी हैं और खेत मैदान जैसे दिख रहे हैं। इस रास्ते पर भीड़ अब कम है। पीड़ित के घर के बाहर अब सीसीटीवी कैमरा लग गया है। अंदर जाने वालों को मेटल डिटेक्टर से होकर गुजरना पड़ रहा है। दरवाजे पर लोकल इंटेलीजेंस यूनिट का अफसर तैनात है, जो घर में आने-जाने वाले हर व्यक्ति का नाम नोट कर रहा है।
बाहर कुर्सी डाले एक तहसीलदार और एसडीएम बैठी हैं, जो परिवार की हर जरूरत का ध्यान रख रही हैं। घर के भीतर भी सादी वर्दी में पुलिसकर्मी तैनात हैं। वहीं अपने आप को सूचना विभाग का अधिकारी बताने वाला एक बुजुर्ग व्यक्ति चुपके-चुपके सबकी तस्वीरें ले रहा है। पुलिसकर्मियों के लिए अब तंबू लग गया है और अस्थाई शौचालय भी बनाए गए हैं।
कथित गैंगरेप के 24 दिन बाद बुलगढ़ी में अब बहुत कुछ बदल गया है। पहले परिवार बोल रहा था और गांव वाले खामोश थे। अब पीड़ित का परिवार बोल-बोलकर थक चुका है और गुमसुम सा है, लेकिन अब गांव वाले बोल रहे हैं। जिसके जो मन में आ रहा है कह रहा है। कई तरह की थ्योरी अब गांव में चल रही हैं। लोग पीड़ित के परिवार पर आरोप लगाने लगते हैं, लेकिन कही-सुनी बातों के सबूत मांगने पर सब चुप हो जाते हैं और कहते हैं- 'अब ये हमै न पतौ।'
मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि पीड़ित के भाई के फोन नंबर और मुख्य आरोपी संदीप के फोन नंबर के बीच 104 बार कॉल हुईं और इस दौरान करीब 5 घंटे बात हुई। अब गांव में हर कोई इन्हीं फोन कॉल्स का जिक्र कर रहा है। अब खुली जुबान से लोग कह रहे हैं कि कुछ न कुछ तो चक्कर था।
हालांकि पीड़ित का परिवार अभी भी संदीप के साथ किसी भी तरह का संपर्क होने से इनकार कर रहा है। इस बारे में जब मैंने पीड़ित की मां से सवाल किया तो उन्होंने कहा, ‘मेरा बेटा नरेगा में काम करता था तो प्रधान नंबर लिखकर ले गए थे। बैंक के खाते में पैसा आता था। प्रधान जी का कहना था कि नंबर नहीं दोगे तो पैसा कहां से आएगा। तीनों बाप-बेटे नरेगा में काम करते थे। गांववालों के पास नंबर हैं। हमारा ये नंबर बहुत पुराना है।’
आरोपी से बातचीत के सवाल पर वो कहती हैं, ‘उनसे हमारी कोई बात नहीं होती थी। वो तो नरेगा पर काम करने जाते नहीं थे। हम जैसे गरीब लोग ही जाते हैं। परिवार का कहना है कि कॉल डिटेल की ये बात जांच को प्रभावित करने और आरोपियों को बचाने के लिए चलाई गई है। मेरी बेटी अनपढ़ थी, उसे तो फोन भी उठाना नहीं आता था।’
‘फोन आता था तो भाभी के पास लेकर भागती थी। कहती थी भाभी, देखो किसका फोन है। मेरे घर में सात साल से बहू रह रही है। बेटी हमेशा उसके साथ ही रहती थी। वो कभी अकेली रही ही नहीं। अगर कभी फोन पर किसी से बात करती तो किसी ने तो देखा होता उसे बात करते हुए।’
क्या कॉल डिटेल पुलिस की ओर से जारी की गई हैं, इस सवाल पर हाथरस के एसपी का कहना है, ‘मुझे इनके बारे में मीडिया से ही पता चला है। जांच अधिकारी ही ज्यादा जानकारी दे पाएंगे। फिलहाल एसआईटी इस मामले की जांच कर रही है।’
गांव की महिलाएं कहती हैं कि संदीप ने अपनी बहन की चीज बेचकर पीड़ित को शॉपिंग कराई थी। इस सवाल पर पीड़ित की मां के मुंह से पहले शब्द निकलते हैं, 'हाय रै, कहीं सामान भी तो हो, क्या शॉपिंग कराई, लड़की हमारी घर से बाहर कभी निकलती नहीं थी, वो शॉपिंग कब कर आई? अगर वो किसी के साथ ऐसे जाती तो मैं उसे चीर के सुखा देती। वो न तो नेल पॉलिश लगाती थी, न मेकअप करती थी। हमें तो ये भी ना पता कि ये शॉपिंग क्या होती है। सब शॉपिंग-शॉपिंग कर रहे हैं।’
इसी सवाल पर पीड़ित की भाभी कहती हैं, ‘उसे कपड़ों की पहचान भी नहीं थी। वो सोचती थी जो मेरी भाभी लाकर देंगी, वही सबसे बढ़िया चीज है। उसे कुछ खरीदना ही नहीं आता था। वो कभी घर से बाहर नहीं निकली। चंदपा तक अकेले कभी नहीं गई। उसने कभी हाथरस का बाजार तक नहीं देखा था। पूरे बाजार में कोई बता दे कि हमने इनकी लड़की को कभी देखा।’
एक आरोपी रामू के बारे में कहा जा रहा है कि उसे गलत फंसाया गया है, घटना के समय वह डेरी पर काम कर रहा था। हालांकि, परिजन अभी भी इस बात पर डटे हैं कि वो भी घटना में शामिल था। पीड़ित की मां कहती हैं, ‘हम झूठ बोल सकते हैं, लेकिन वो लड़की मरते-मरते झूठ क्यों बोलेगी। अपने बेटे को बचाने के लिए लोग सौ तरह की बातें करते हैं।’
‘भगवान देख रहा है। बच्ची हमारी चली गई। गांव वाले यहां आकर मुझसे कहें, पीछे तो कुत्ते भौंकते रहे हैं। गांव में क्यों मीटिंग जोड़ रहे हैं, मेरे सामने आकर बात करें। जब मेरी बेटी मरी, तब एक भी मेरे घर नहीं आया। अब बातें सुना रहे हैं।’ आरोपियों के समर्थन में अब आसपास के गांवों में कई पंचायतें हो चुकी हैं। सवर्ण समाज के लोग अब खुलकर उनके समर्थन में आ गए हैं। आसपास अब ये आम राय है कि ठाकुर समाज के लड़कों को गलत फंसाया गया है।
इन पंचायतों के बारे में पीड़ित की बुआ कहती हैं, ‘वो ठाकुर हैं, हम वाल्मिकी हैं। ये बड़ी बिरादरी हैं और हम हैं हरिजन। ये लोग पहले से हमसे इतनी छुआछूत करते हैं कि दुकान पर पैसे भी लेंगे तो दूर से लेंगे और फिर उस पर पानी के छींटे मारेंगे, तब उठाएंगे। तो हमारी बेटियों के साथ इतना बड़ा अन्याय किया है, ये भी पहले से ही चला आ रहा होगा, एक दिन में तो कुछ किया नहीं होगा। अब गांव-गांव में पंचायतें हो रही हैं, अब वो सोच रहे हैं कि हम बड़े लोग हैं, ये छोटे लोग हैं। ये ठाकुरों के लिए बहुत बड़ी बात हो गई है कि उनके लड़कों ने हरिजन की लड़की को छू लिया।’
आरोपियों के समर्थन में हो रही पंचायतों की वजह बताते हुए पीड़ित की भाभी कहती हैं, ‘इसके पीछे क्या है? पता है, ऊंच नीच, भेदभाव, उनकी नाक कट जाएगी कि नीची जाति की लड़की के कारण हमारे लड़कों को इतनी बड़ी सजा हो गई। इसकी इतनी औकात नहीं थी। इसलिए ही सब एक हो रहे हैं। उन्हें इस बात से मतलब नहीं है कि क्या हुआ और सच्चाई क्या है। वो ये नहीं सोच रहे कि जिसने गलती की है उसे सजा मिलनी चाहिए।’
पीड़ित का परिवार अब अस्पताल में हुई उसकी मौत पर भी सवाल उठा रहा है। उसकी चाची कहती हैं, ‘जब वो अलीगढ़ के अस्पताल में थी तब बात कर रही थी, खाना खा रही थी। एक रोटी खाई, जूस पिया, बिस्कुट भी खाया। अस्पताल का दलिया भी खाया। फिर दिल्ली जाकर क्या हो गया कि एक ही रात में मर गई?'
पीड़ित की दुधमुंही भतीजी के बदन पर कमरे के भीतर लेटे-लेटे दानें पड़ गए हैं। अब आंगन में उसके लिए साड़ी टांगकर झूला बना दिया गया है। उसकी मां का दूध नहीं उतर पा रहा है। भैंस का दूध वो पचा नहीं पा रही है। उसकी पांच साल की बड़ी बहन घर के हर कोने में रो-रोकर अपनी बुआ को खोज रही थी, उसे अब नानी के घर भेज दिया गया है।
पीड़ित का परिवार अभी अपनी बेटी का गम भी नहीं मना पाया है। उसकी बुआ कहती हैं, हम अपनी बेटी के लिए रोना चाहते हैं, हमे थोड़ा समय मिल जाए तो हम उसके लिए खुलकर रो लें। वहीं पीड़ित की भाभी को लगता है कि वो कहीं से आ जाएगी। कहती हैं, ‘वो रोबोट की तरह काम करती थी, मुझे कोई चीज उठाने नहीं देती थी। काश वो आ जाए, काश मैं उसे उस दिन घास काटने जाने से रोक लेती। मैं जब भी दरवाजे की ओर देखती हूं लगता है दीदी अब आ जाएंगी।’
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